प्रोग्रमिंग लैंग्वेजेस या भाषाएँ (Programming Languages in hindi)

 

 प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेस क्या हैं (What is Programming Languages)

किसी काम को करने के लिये प्रोग्रामर निर्देशों का एक सीक्वेंस लिखता है जिसे प्रोग्राम कहते है। इन प्रोग्राम्स को लिखने के लिये प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेस या भाषाएँ (Programming Languages in Hindi) होती हैं जिनमें कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखे जाते हैं। प्रोग्राम एक निर्देश या कमांड जो कम्प्यूटर को किसी विशेष कार्य को करने के लिये दिया जाता है। तथा इन्हीं प्रोग्रामों के सेट को साफ्टवेयर कहा जाता है।

 

एक प्रोग्राम के प्रत्येक निर्देशों को क्रमबद्ध तरीके से इंटरप्रिट करने के लिये कम्प्यूटर में एक सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) होती है। जो डाटा को मैनीपुलेट करती है तथा डाटा को मेन मेमोरी मे लोड करती है इसके यह दूसरे निर्देशों को क्रियान्वित करती है तथा यह प्रक्रिया अन्तिम निर्देश के संचालित होने तक चलती रहती है।

 

जिस प्रकार जो भाषा हम प्रयोग में लाते हैं जैसे हिन्दी, अंग्रेजी आदि सभी भाषाऔं में जैसे हिन्दी मे व्याकरण तथा अंग्रेजी में ग्रामर शब्दों के प्रयोग का एक सिस्टमैटिक तरीका होता है उसी प्रकार कम्प्यूटर लैंग्वेजेस में भी किसी भी शब्द अथवा सिम्बल्स के इस्तेमाल का भी एक तरीका होता है जिन्हें उस लैग्वेज के लिए सिंटैक्स रूल्स कहा जाता है। 

 

जिसकी हमें कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिये पूरी जानकारी होनी चाहिये क्योंकी हमारे द्वारा बोली जाने वाली भाषा में थोड़ी बहुत गल्ती चल जाती है मगर कम्प्यूटर को अपनी बात समझाने के लिये हमें प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के सिंटेक्स को सख्ती से मानना पड़ता है।

 

प्रोग्रमिंग लैंग्वेजेस या भाषाएँ (Programming Languages in hindi)

 

प्रोग्रमिंग लैंग्वेजेस या भाषाएँ (Programming Languages in hindi)

 



Table of Contents

     

     

    इन कम्प्यूटर लैंग्वेजेस को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।-

    • मशीन लैंग्वेज (Machine  Language)
    • एसेंम्बली लैंग्वेज (Assembly Language)
    • हाई लेवल लैंग्वेज (High Level Language)

     

     



    मशीन लैंग्वेज (Machine Language) 

    वे कोड या निर्देश जो बिना किसी ट्रान्सलेटर के कम्प्यूटर के द्वारा डायरेक्ट एक्जीक्यूट किये जा सके चाहे वह बाइनरी में हो या डेसीमल नोटेशन मेंं मशीन लैंग्वेज या मशीन कोड कहलाते हैं।

     

    एक कम्प्यूटर केवल ज़ीरो (zero) और वन (one) से बनी हुई सूचना ही समझ पाता है जिसे बाईनरी नम्बर सिस्टम कहते हैंं। इसलीये कम्प्यूटर काम करने के लिये केवल बाईनरी डिजिटस का ही प्रयोग करता है ।

     

    इसीलिये मशीन लैंग्वेज कोड में कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखना बहुत ही जटिल कार्य है इसके साथ ही उसमें त्रुटि का पता लगाना भी बहुत ही मुश्किल कार्य है मशीन लैग्वेज में सारे निर्देश ज़ीरो और वन में ही लीखे जाते है

     

    मशीन लैंग्वेज कम्प्यूटर की मूल भाषा है और सामान्यतः ये 0 और 1 की स्ट्रींग्स के रूप में लिखे जाते हैं। परन्तु यह जरूरी नहीं की कोडिंग केवल 0 और 1 यानी बाईनरी में ही की जाये यह जरूरी नहीं है इन निर्देशों को डेसीमल डिजिट्स का प्रयोग करके भी लिखा जा सकता है। यदि कम्प्यूटर का सर्किट इसकी अनुमती देता है।

     

    कम्प्यूटर की सर्किट की वायरिंग इस प्रकार की जाती है कि यह मशीन लैंग्वेज को पहचान कर इसे इलेक्ट्रानिक सिग्नल्स में बदल सके मशीन लैंग्वेज में बनाए गए किसी निर्देश के दो भाग में फार्मेट होता है।

     

    जिसमें पहला भाग कमांड या आपरेशन होता हैॆ। जिसके द्वारा कम्प्यूटर को बताया जाता है कि क्या काम करना है। कम्प्यूटर के पास इसके फंक्शन के लिए एक आपरेशन कोड या op code होता है तथा दूसरा भाग ऑपरेंड operand होता है। 

     

    यह कम्प्यूटर को बताता है कि डाटा या अन्य निर्देशों जिन्हें मैनीपुलेट किया जाना है को कहाँ से लेना है और कहाँ स्टोर करना है तथा इस कार्य में शामिल डाटा फील्डस की लंबाई तथा लोकेशन  भी बताते हैं। 

     

    इस प्रकार मशीन लैंग्वेज मे बाईनरी नम्बर की स्ट्रिंग्स शामिल होते हैं। यह एक मात्र लैंग्वेज है जिसे CPU सीधे-सीधे समझता है। जब कम्प्यूटर के अंंदर निर्देशों की स्ट्रिंग्स को स्टोर किया जाता है तो यह स्ट्रिंग्स 0 और 1 के बने होते हैं। उदाहरण के लिये "10110011111010011101100" यह एक स्ट्रिंग है।

     

    जो किसी शब्द या सिम्बल को बाईनरी में कनवर्ट करके लिखा जाता है हम जो कुछ भी कम्प्यूटर को बताना या निर्देशित करना चाहते हैं मशीनी लैंग्वेज में सारे निर्देश इसी फार्मेट में लिखे जाते हैं।

     

     

    Machine Language इस्तेमाल करने के फायदे व नुकसान

    मशीन लैंग्वेज के फायदों की बात की जाय तो इसमें केवल एक ही फायदा है की यह मशीन लैंग्वेज में लिखे प्रोग्राम बहुत ही तेजी से संचालित होते हैं। क्योंकी मशीन निर्देश CPU द्वारा सीधे समझे जाते हैं तथा प्रोग्राम को रन करने के लिये अनुवादक की आवश्यकता नहीं होती।

     

    इसके साथ ही इस मशीन लैंग्वेज के कई नुकसान भी है जो निम्नलिखित है-

     

    प्रोग्राम लिखने में कठिन (Difficult to Program)

    मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम कम्प्यूटर को आसानी से समझ में आ जाती और तेजी से संचालित होती है मगर मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम को लिखना बहुत ही कठिन कार्य होता क्योंकि प्रोग्रामर के लिए यह बहुत ही जरूरी है कि वह मशीन के इंस्ट्रक्शन सैट में कमांड्स के लिए कई दर्जन कोड नंबर्स को या तो याद रखे या एक रेफरेंस कार्ड को लगातार रेफर करता रहे। 

     

    प्रोग्रामर को डाटा एवं निर्देशों के स्टोरेज लोकेशन्स का हिसाब रखने के लिए भी बाध्य होना पड़ता है। मशीन लैंग्वेज प्रोग्रामर को एक ऐसा एक्सपर्ट भी होना चाहिय जो कम्प्यूटर के हार्डवेयर स्ट्रक्चर के बारे में भी जानकारी रखता है।

     

    गलतियों की संभावना

    मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम मे गलतियों की सम्भावना बहुत ही अधिक होती है क्योंकि प्रोग्रामर को बहुत सारे कोड्स याद रखने पड़ते हैं इसी के साथ-साथ प्रोग्रामर को डाटा और निर्देशों के स्टोरेज लोकेशन का हिसाब भी रखना पड़ता है।

     

    मॉडिफाई करने में कठिन (Difficult to Modify)

    मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम्स को लिखना जितना कठिन होता है उस्से अधिक कठिनाई इसको डीबग या मॉडीफाई करने में होती है अधिकतर प्रोग्रमर मशीन कोड को डीबग करने से ज्यादा उसको दोबारा लिखना ज्यादा आसान समझते हैं।

     

    मशीन पर निर्भरता  (Machine Dependent)

    क्योंकी प्रत्येक प्रकार के प्रोसेसर की इंटर्नल डिजाइन अन्य प्रकार के प्रोसेसर से अलग होती है इसलिये हर प्रकार के प्रोसेसर को कार्य करने के लिये अलग तरह के इलेक्ट्रानिक सिग्नल्स की आवश्यकता होती है मशीन लैंग्वेज भी एक कम्प्यूटर से दूसरे में अलग तरह से होती है। 

     

    इसलिय यह महत्वपूर्ण है कि एक निश्चित कम्प्यूटर के मशीन कोड में महारत हासिल करने के बाद प्रोग्रामर को कम्प्यूटर सिस्टम को बदलने का स्थिति में एक नया मशीन कोड सीखना पड़ेगा और उसे सभी मौजूदा प्रोग्राम्स को फिर से लिकना पड़ेगा।

     

     

    ऐसेंबली लैंग्वेज (Assembly Language)

    ऐसेंबली लैंग्वेज प्रोग्राम मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम की तुलना मे लिखना आसान होता है क्योंकी यह 0 और 1 के मुकाबले अल्फा न्युमैरिक सिंबल्स में प्रोग्राम्स लिखे जाते है जिसके लिये अर्थपूर्ण एवं आसानी से याद रखे जाने वाले सिंबल्स का प्रयोग किया जाता है। 

     

     उदाहरण के लिए जोड़ने के लिए ADD(Addition), घटाने के लिये SUB (Subtraction)  आदि सिम्बल्स का प्रयोग किया जाता है जिन्हें निमोनिक्स (mnemonics) कहा जाता है। निमोनिक्स में लिखा गया प्रोग्राम ऐसेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम कहते हैं।

     

    ऐसेम्बली लैंग्वेज  के लाभ (Advantages of Assembly Language)

    हाई लेवल लैंग्वेज की तुलना में एसेम्बली लैंग्वेज के लाभ ये है कि ऐसेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम का कम्प्यूटेशन टाइम कम है।

     

    ऐसेम्बली लैंग्वेज के नुकसान (Disadvantages of Assembly Language)

    1-    प्रोग्रमिंग कठिन होने के साथ-साथ  इसमें बहुत समय लगता है। 
     
    2-    असेम्बली लैंग्वेज मशीन पर निर्भर होती है। प्रोग्रामर को उसके द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले कम्प्यूटर के विषय में विस्तृत जानकारी होनी जाहिए। उसे कम्प्यूटर के रजिस्टर्स एवं निर्देशों के सैट्स पेरिफेरल्स से पोर्टस के कनेक्शन्स आदि की भी जानकारी होनी चाहिए।
     
    3-    एक कम्प्यूटर के लिए ऐसेम्बली लैंग्वेज में लिखा गया प्रोग्राम अन्य किसी कम्प्यूटर में इस्तेमान नहीं हो सकता है अर्थात ऐसेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम पोर्टेबल नहीं होता है। प्रत्येक प्रोसेसर (Processor) का अपना निर्देशों का सेट होता है और इस तरह से उसकी अपनी ऐसेम्बली लैंग्वेज होती है।
     
    4-    हाई लेवल लैंग्वेज प्रोग्राम की तुलना में एक ऐसेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम में अधिक निर्देश होते हैं। हाई लेवल लैंग्वेज (जैसे C, C++ आदि) में बने किसी प्रोग्राम का प्रत्येक स्टेटमेंट एक ऐसेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम के कई निर्देशों के बराबर होता है।
     
    5-    एसेम्बली लैंग्वेज में, निर्देश अभी भी मशीन कोड लेवल में लिखे जाते हैं। इसका अर्थ है कि एक ऐसेम्बली लैंग्वेज निर्देश एक मशीन कोड निर्देश के बदले में इस्तेमाल होता है।
     
     
     

    लो लेवल एवं हाई लेवल लैंग्वेज (Low Level and High Level Languages)

    लो लेवल लैंग्वेजेस वे लैंग्वेज हैं जिसमें स्टेटमेंट सीधे सिंगल मशीन कोड मे ट्रांसलेट किया जाता है उसे ही लो लेवल लैंग्वेज कहा जाता है। विभिन्न प्रोसेसर्स  की एसेम्बली लैंग्वेजेस ही लो लेवल लैंग्वेज हैं एक ऐसेम्बली लैंग्वेज या लो लेवल लैंग्वेज की समस्या यह कि यह इसके द्वारा क्रियान्वित किये जाने वाली क्रिया से कम कम्प्यूटर के स्ट्रक्चर से अधिक करीब होती है। 

     

    हाई लेवल या प्रोसीजर ओरिएन्टेड लैंग्वेजेस को लो लेवल लैंग्वेजेस से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिय विकसित किया गया। हाई लेवल लैंग्वेज कम्प्यूटर ओरिएण्टेड होने कि बजाये प्रॉबलम ओरिएन्टेड होती है हाई लेवल लैंग्वेज में प्रोग्रामर को कम्प्यूटर के स्ट्रक्चर के विषय मे जानने की कोई आवश्यकता नहीं होती जिससे वह समस्या को अधिक प्रभावी ढ़ंग से फॉर्मुलेट कर पाता है।

     

    हाई लेवल लैंग्वेज में लिखे गए निर्देशों को स्टेटमेंट कहा जाता है। जो लो लेवल लैंग्वेज के निमोनिक्स के बजाय यह इंग्लिश और मैथमैटिक्स की तरहा लगते हैं। हाई लेवल लैंग्वेजस कम्प्यूटर के आर्कीटेक्चर से स्वतंत्र होते हैं। एक प्रोग्राम किसी भी कम्प्यूटर के लिये एक हीं होता है अर्थात यदि दो इनपुट लेना है और उनपर कुछ तार्किक क्रिया करनी हो तो वह प्रोग्राम किसी भी कम्प्यूटर में चल सकता है।

     

    हाई लेवल लैंग्वेजेस (High Level Languages) के उदाहरण-

    BASIC, PASCAL, FORTRAN, COBOL, ALGOL, PL/1, PROLOG, LISP, ADA, SNOBOL, C, C++, C# आदि।

     

     

     

    हाई लेवल लैंग्वेजेस के लाभ (Advantages of High level Languages)

    ऐसेम्बली और मशीन लैंग्वेजेस की तुलना में हाई लेवल लैंग्वेजेस के लाभ।

     

    मशीन से स्वतंत्रता (Machine Independent)

    हाई लेवल लैंग्वेजेस का इससे कोई लेना-देना नहीं होता की प्रोग्राम किस कम्प्यूटर के लिये लिखे गये हैं। चाहे वह किसी भी ब्राण्ड का कम्प्यूटर हो हाई लेवल लैंग्वेज में लिखे गये प्रोग्राम सभी कम्प्यूटर मे रन करता है।

     

    इस्तेमाल करने तथा सीखने में आसान (Easy to Learn And Use)

    ये प्राग्रामिंग भाषाये लिखने व सीखने के लिए बहुत ही आसान होती है। इसमें प्रोग्रामर को कम्प्यूटर के विषय में कुछ भी जानने की आवश्यकता नहीं है।

     

    कम गलतियाँ (Fewer Errors)

    हाई लेवल लैंग्वेजेस में लिखे गये प्रोग्राम्स में गलतियों की सम्भावना न के बराबर होती है। यदि कोई गलति हो भी जाये तो उसको डीबग करना या सही करना भी बहुत आसान होता है हाई लेवल लैंग्वेजेस में प्रोग्रामर को सभी छोटे-छोटे स्टेप्स लिखने की आवश्यकता नहीं होती जिनको कम्प्यूटर किसी काम को करने के लिए परफार्म करता है।

     

    प्रोग्राम को तैयार करने की लागत काफी कम होती है (Lower Program Preparation Cost)

    हाई लेवल लैंग्वेजेस में मशीन लैंग्वेजेस के मुकाबले लागत बहुत ही कम होती है क्योंकि हाई लेवल लैंग्वेजेस में प्रोग्राम लिखने में मेहनत बहुत ही कम करनी पड़ती है इसी के साथ इसमें गलतियाँ भी कम होती हैं जिससे समय की काफी बचत होती है और यदि समय की बचत होती है तो लागत भी कम आती है।

     

    बेहतर डॉक्युमेंटेशन (Better Documentation)

    हाई लेवल लैंग्वेजेस प्रोग्राम्स के लिये बहुत कम या व्यवहारिक तौर पर कोई भी अलग कमेंट स्टेटमेंट्स की आवश्यकता नहीं होती है। इस तरहा के प्रोग्राम्स के निर्देश लगभग प्राबलम की लैंग्वेज की तरह ही लेखे जाते है। ऐसा व्यक्ति स्टेटमेंट्स को समझ सकता है यदि वह प्राबलम से परिचित है।

     

    रखरखाव करने में आसान (Easy to Maintain)

    हाई लेवल लैंग्वेजेस का रखरखाव बहुत ही आसान होता है। क्योंकी इन प्रोग्राम्स को मेनटेन करना भी आसान होता है इनको मॉडीफाई करना कोई स्टेटमेंट हटाना या इन्सर्ट करना आदी बहुत ही आसान होता है इसमें किसी स्टेटमेंट को आसानी से सर्च किया जा सकता है।

     

     

     

    हाई लेवल लैंग्वेजेस के नुकसान (Disadvantages of High Level Languages)

    कार्यकुशलता में कमी (Lower Efficiency)

    हाई लेवल लैंग्वेजेस में लिखे गये प्राग्राम्स चलने में ज्यादा समय लेते हैं तथा इन्हें कम्प्यूटर की मेन मेमोरी की अधिक आवश्यकता होती है।

     

    लचीलेपन में कमी (Lack of Flexibility)

    हाई लेवल लैंग्वेजेस में ऑटोमैटिक फीचर्स प्रोग्रामर के नियंत्रण मे नही होते। इस लैंग्वेज में लिखे गये प्रोग्राम्स एसेम्बली लैंग्वेजेस में लिखे गये प्रोग्राम्स की तुलना में कम लचीले होते है। 

     

    एक Assembly Language प्रोग्रामर्स को उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मशीन के सभी विषेश फीचर्स में प्रवेश करने की अनुमती प्रदान करती है। 

     

    कुछ Operations जो आसानी से मशीन की Assembly Language का इस्तेमाल करके प्रोग्राम किए जा सकते हैं को High Level Language का इस्तेमाल करके बनाना बहुत ही अव्यवहारिक होगा। इस लचीलेपन मे कमी का अर्थ है कि कुछ कार्य हाई लेवल लैंग्वेज में नहीं किए जा सकते हैं।

     

     

     

    सोर्स एवं ऑब्जोक्ट लैंग्वेज क्या है (What is Source and Object Language)

    सोर्स एवं ऑब्जेकट लैंग्वेज वे लैंग्वेज हैं जिसमें प्रोग्रामर प्रोग्राम्स लिखता है, उसे सोर्स लैंग्वेज(Source Language) कहा जाता है 

     

    यह एक हाई लेवल लैंग्वेज या एक ऐसेम्बली लैंग्वेज हो सकती है। जिस लैंग्वेज में कम्प्यूटर काम करता है उसे ऑब्जेक्ट लैंग्वेज या मशीन लैंग्वेज कहा जाता है। 

     

    मशीन कोड्स को ऑब्जेक्ट कोड्स(Object Code) भी कहा जाता है सोर्स लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम को सोर्स प्रोग्राम कहा जाता है। 

     

    जब एक सोर्स प्रोग्राम को मशीन कोड में एक ऐसेम्बलर या कम्पाइलर द्वारा परिवर्तित किया जाता है, तो इसे एक ऑब्जेक्ट प्रोग्राम कहा जाता है। 

     

    अन्य शब्दों में एक्जीक्यूशन के लिए तैयार एक मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम को ऑब्जेक्ट प्रोग्राम(Object Programm) कहा जाता है।

     

     

    प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेस का इतिहास

    Programming Language Year of Development Developer(s)
    Fortran 1957 IBM (John Backus and team)
    Lisp 1958 John McCarthy
    COBOL 1959 CODASYL committee, led by Grace Hopper
    ALGOL 1958-60 International Federation for Information Processing (IFIP)
    BASIC 1964 John Kemeny, Thomas Kurtz
    COPL 1966 IIT Kanpur, India
    C 1972 Dennis Ritchie
    Pascal 1970 Niklaus Wirth
    Smalltalk 1972 Alan Kay, Adele Goldberg, and others at Xerox PARC
    C++ 1983 Bjarne Stroustrup
    Objective-C Early 1980s Brad Cox
    Ada 1980s U.S. Department of Defense
    Java 1995 James Gosling, Mike Sheridan, Patrick Naughton at Sun Microsystems
    Python 1991 Guido van Rossum
    Ruby 1993 Yukihiro "Matz" Matsumoto
    JavaScript 1995 Netscape Communications Corporation (Brendan Eich)
    PHP 1994 Rasmus Lerdorf
    C# (C-Sharp) Late 1990s Microsoft (Anders Hejlsberg)
    Swift 2010-14 Apple Inc. (Chris Lattner and team)
    Rust 2010-15 Mozilla (Graydon Hoare and team)

     

     

    हाई लेवल लैंग्वेजेस का संझिप्त विवरण (Brief Description of High level Languages)

    हाई लेवल लैंग्वेजेस का बारे में नीचे कुछ लोकप्रिय कम्प्यूटर भाषाएँ या प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेस की संक्षिप्त जानकारी दी गई हैं। जो आपके लिये उपयोगी हो सकती है।-

     

    बेसिक (BASIC)

    इस भाषा का सन्1965ई0 में डार्टमाउथ(Dartmouth) कॉलेज में प्रारम्भ किया गया था। यह एक बिगिनर्स  ऑल-परपस सिंबॉलिक इंस्ट्रक्शन कोड (Beginners All Purpose Symbolic Instruction Code) का छोटा रूप है। 

     

    बेसिक का प्रोयग व्यापक तौर से सरल Computetion और Analysis में किया जाता है। बेसिक निर्देशों को इंटरप्रिटर्स का प्रयोग करके मशीन लैंग्वेज कोड्स में ट्रांसलेट करने के लिए अक्सर कम्प्यूटर सिस्टम्स में किया जाता है

     

    फोर्ट्रान (FORTRAN)  

    फोर्ट्रान का प्रयोग साइंटिफिक एवं इंजिनियरिंग कम्प्यूटेशन के लिये किया जाता है। फोर्ट्रान को सन्1957ई0 में IBM ने प्रारम्भ किया था। यह फार्मूला ट्रांसलेशन(Formula Translation) का एक छोटा रूप है।

     

    फोर्ट्रान में मैथमैटिकल ऑपरेशन के लिए बहुत से फंक्शन शामिल है। यह एक कम्पैक्ट लैंग्वेज है। फोर्ट्रान में  इंजीनियरिंग और सांइटिफिक प्रोग्राम्स की बड़ी-बड़ी लाईब्रेरीज लिखी गई है। इसके कई वर्जन्स हैं। 

     

    सन्1977ई0 में अमेरिकन नेशनल स्टैंडर्ड्स इंस्टीट्यूट (ANSI) ने FORTRAN के लिए एक स्टैंडर्ड पब्लिश किया था जिसे FORTRAN77 कहा गया है। इसके पीछे उनका आइडिया ये था कि सभी निर्माता लैंग्वेज के एक ही रूप का इस्तेमाल कर सकें।

     

    कोबोल (COBOL)

    इसको US इंडस्ट्री/गवर्नमेंट कमिटी  ने सन्1960ई0 में प्रारम्भ किया था। यह एक कॉमन बिजनेस ऑरिएंटेड लैंग्वेज (Common Business Oriented Language) का छोटा रूप है। इसका प्रयोग बड़े बिजनेस एवं कॉमर्शियल ऐप्लीकेशन्स जैसे लैजर्स की हैंडलिंग अकाउंटस, पेरोल फाइल्स  आदि के लिए होता है।

     

    कोबोल(COBOL) के द्वारा जटिल से जटिल न्युमैरिक ऑपरेशन किये जा सकते हैं यह सरल एवं सीमित न्युमैरिक कार्यों को सपोर्ट करती है। अल्फा न्युमैरिक कैरेक्टर्स को मैनीपुलेट करने में यह फोर्ट्रान से अधिक उपयोगी है कोबोल को अर्ध-इंग्लिश (Quasi-English) फार्म में लिखा जाता है। इसके इंग्लिश की तरह के स्टेटमेंट्स आसानी से समझे जा सकते हैं।

     

    उदाहरण- SUBTRACT, WITHDRAWLS FROM OLD BALANCE GIVING NEW BALANCE

    परन्तु इसमे कुछ कमियाँ भी हैं जैसै- यह एक कॉम्पैक्ट लैंग्वेज नहीं है। इसके द्वारा कठिन मैथमैटिकल कम्प्यूटेशन नहीं कर पाती तथा यह एक कॉम्पैक्ट लैंग्वेज नहीं है।

     

     

    प्रोग्रामिंग लैंग्वेज C (Programming Language C)

    Programming Language C सन् 1972ई0 में डेनिस एम. रिची (Dennis M. Ritchie) में बनाई गई थी C एक जनरल परपस कम्प्यूटेशन लैंग्वेज है। इसे अन्य लैंग्वेजेस के अच्छे कॉन्सेप्ट्स को उधार लेकर किया गया है। 

     

    लेकिन इसकी अच्छी पोर्टेबिलिटी की विशेषताओं को बनाए रखा गया है। इसे मूलरूप से ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर लिखने के उद्देश्य से डेवेलप किया गया था। बाद में इसमे कई रिविजन्स हो चुके हैं जिसके बाद इसमे कई सारे नए फीचर्स को जोड़ा गाया ताकि इसे अधिक उपयोगी और पावरफुल बनाया जा सके।

     

    C लैंग्वेज का पहला मुख्य उपयोग था UNIX नामक ऑपरेटिंग सिस्टम UNIX की सफलता और इसके बाद सिस्टम प्रोग्रामिंग के लिए C की लोकप्रियता ने इसकी और एप्लीकेशन प्रोग्रामर्स को आकर्षित किया।

     

     

    Conclusion(निष्कर्ष)

    अन्ततः हमने देखा की प्रोगामिंग भाषा क्या है प्रग्रामिंग भाषा भाषा का एक साधन है जिसके द्वारा हम कम्प्यूटर से बात कर सकते हैं। या कम्प्यूटर को निर्देशित कर सकते हैं कि किसी कार्य को किस प्रकार किया जाना है।

    या किसी तार्किक प्रक्रिया को किस तर्क के आधार पर पूरा किया जाना है और कम्प्यूटर की Programming language  को हमने समझा की कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का विकास किस प्रकार हुआ।

    जिसके क्रम में हमने देखा की सबसे पहले कम्प्यूटर से बात करने के लिये Machine Language का प्रयोग किया जा रहा था। जो कम्प्यूटर को निर्देशित करने के लिए प्रोयग मे लाई जाती थी। जिसमें कुछ अच्छाई और कुछ बुराई थी जिसके कारण इस भाषा में सुधार किया गाय और भाषा का विकास होता रहा होते-होते Assembly Level Language फिर Low level Language फिर High Level Language  का विकास हुआ। 

    जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की भाषाऔं का विकास हुआ प्रत्येक भाषा की अपनी एक विषेशता अपना एक क्षेत्र है जिसमे वह प्रभावी हैं। इसी विकास के क्रम को हमने संक्षेप में समझा।

    अन्ततः यदि आपको हमारी यह कोशिश अच्छी लगती है तो आप हमारे इस कार्य को अपने दोस्तों और उन लोगों तक पहुँचाएँ जिनको इसकी आवश्यकता हो सकती है।

    साथी ही हमें कमेंट बाक्स के माध्यम से इसके विषय में अवश्य बतायें कि आपको इसके अतिरिक्त यदी कोई और प्रकार की जानकारी की आवश्यकता हो तो हम उसपर भी काम करने का प्रयास करेंगे।

    धन्यवाद!

     

     

     

     


    FAQ (Friquently Asked Questions)

     

    Q1-प्रोग्रामिंग भाषाएँ क्या हैं

    Ans-किसी समस्या का क्रमवार समाधान प्रोग्रामिंग कहलाती है उसी समस्या का समाधान कम्प्यूटर को समझाने के लिये जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है या जो भाषा कम्प्यूटर समझता है जिस भाषा में कम्प्यूटर को निर्देशित किया जा सकता है उसे प्रोग्रामिंग लैंग्वेज या प्रोग्रामिंग भाषा कहा जाता है। ।

    Q2-प्रोग्रामिंग लैंग्वेज कितने प्रकार की होती हैं?

    Ans2-कम्प्यूटर प्रोगामिंग भाषाएँ तीन प्रकार की होती है मशीन लैंग्वेज, असेंबली लैंग्वेज, हाई लेवल लैंग्वेज।

    पहली कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज कौन सी है?

    Ans3 पहली कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज Plankalkul है जिसे Konrad Zuse ने सन्1940रई0 के शुरुआत में बनाया था।

    Q4-Syntex सिंन्टेक्स क्या है?

    Ans4-कम्प्यूटर को दिये जाने वाले निर्देशों के सेट के एक निश्चित क्रम को सिन्टेक्स कहा जाता है या वह नियम जिसमे कम्प्यूटर को निर्देशित किया जाता है।

    Q5-प्रोग्रामिंग भाषाएँ क्या हैं और हमें उनकी आवश्यकता क्यों है?

    Ans5-चूँकि कम्प्यूटर हमारे द्वारा बोली जाने वाली भाषा को नहीं समझता परन्तु हमें कम्प्यूटर से अपने कार्यो को करवाना है जिसके लिए हमें अपनी समस्या कम्प्यूटर को समझाना जरूरी है जिससे वह हमारी समस्या का समाधान कर सके जिसके लिये कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग लैंंग्वेजेस का विकास किया गया है और हमें अपने कामों को कम्प्यूटर से करवाने के लिए हमे कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा की आवश्यकता होती है।

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